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KaviKumar Sumit is an indian Hindi poet, author and comedian. He recites his poems in various stage shows in special occasions. MP government in year 2015 awarded him as Bal Pratibha Samman 2015, for his service in creative writing field. Now singing songs and hindi poems with a melodious voice is his passion.
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Hindi Family Story : भूलने की बीमारी | Family Short Story By KaviKumar Sumit
भूलने की बीमारी : पारिवारिक लघु कथा
भूलने की बीमारी : पारिवारिक लघु कथा
मैं अपनी केबिन में बैठकर दिनभर के मेल चेक कर रहा था | दिनभर कंप्यूटर के सामने बैठे-बैठे सर थोडा सा भारी लग रहा था, क्यूँकी अब रात होनी शुरू हो गई थी इसलिए मुझे घर जाने की जल्दी भी होने लगी, लेकिन नियमों का पालन करना भी ज़रूरी है | मेरा केबिन कार्यालय के भवन के बिलकुल किनारे में है इसलिए दाहिने वाली खिडकियों के काँच से बाहर का नज़ारा बिलकुल साफ-साफ़ दिखता है | अरे ये क्या प्रमोद चाय वाला आज फिर पुलिसवाले को देखकर छुपने का प्रयास कर रहा है | रौशनी की बुटीक में ग्राहक कम हैं और रोहन सुबह से चाय की टपरी सम्भाल रहा है, उसके पिताजी अभी कुछ दिनों पहले गुज़रे हैं न इसलिए उसे ही आना पड़ता है | हाँ, काश मैं उसके लिए कुछ कर सकता यही कहकर बार-बार मैं खुद को तसल्ली दे देता हूँ, पिछले रविवार को हम (परिवार) लोग जुहू चौपाटी गए थे | रोहन मिल गया कहने लगा क्या बात है भाई तो पूरी की पूरी फ़ौज इधर अयेली है, मैं उसकी आँखों में देखकर साफ़ बता सकता था की वह हमसे यह कहना चाहता है की अपने सैर-सपाटे का हिस्सा मुझे भी बना लो भैया | थोडा भावुक मिजाज़ होने के कारण मैंने उसे पाव दिला दिया लेकिन वर्षा को ये रास नहीं आया | वर्षा के मन की बात मुझे उसी दिन शयनकक्ष (bedroom) में समझ में आ गयी | वैसे शायद सही कहा उसने मैं सरकारी नहीं हूँ न रोहन मुझे टैक्स देता है कि मैं उसके भावों (emotions) की कद्र करने के लिए उसे कुछ दूँ |
आज का ये 30 वा मेल था, वही बातें बार-बार मुझे अपना व्यापार बढाने के लिए वेबसाइट शुरू करना है, डोमेन काम नहीं कर रहा, वेबसाइट में क्लिक प्रतिक्रिया नही दे रहे ब्ला ब्ला ब्ला | ओह्ह फोन बज रहा है, वर्षा का फोन है |
"हेलो! देवीजी, कहिये क्या खत्म हो गया ?", खुश होकर मैंने फोन उठाया |
उधर से कोई आवाज नही आई |
"अरे! वर्षा बोलो न क्या लाना है ?", मैंने फिर से पूँछा
"आज मेरी तबियत ठीक नहीं है, बाहर से कुछ लेते आना", उसने जरा तीखे अंदाज में कहा |
"अरे तुम्हारा 10 दिन पहले ही तो ख़त्म हुआ है, वो | फिर से पेट दर्द शुरू हो गया ? मैं रूबी को फोन करता हूँ कि भाभी की मदद करो", मैंने उसको शांत करते हुए बोला |
"वो अपने दोस्तों के साथ किसी बर्थडे पार्टी में गई है, पूंछ्कर उसे भी लेते आना और डिनर भी ", उसने फिर कहा |
"हाँ प्रिये, मैं घर आकर बात करता हूँ |" मेरे इतना कहते ही उसने लाइन काट दी |
मैं पहले केबिन से बाहर निकला फिर कार्यालय से बाहर निकला और कार में बैठकर घर की ओर चलाने लगा | मुझे लगभग पता था कि वर्षा की तबियत आज शाम फिर से क्यूँ ख़राब हुई , लेकिन मुझे लगा की अभी कार चलाने एवं सड़क में ध्यान देता हूँ अन्यथा पूरे परिवार की ख़राब हो जाएगी | सामने के कांच में धूल ज्यादा है इसलिए बाहर लोगों के चेहरे साफ़ नही दिख रहे | फिर भी मैंने देखा और सुना की किस प्रकार से दो पति पत्नी दो पहिया में सवार होकर लड़ते हुए जा रहे हैं उनका बच्चा दोनों के बीच में बैठकर बारी-बारी से उनकी तरफ देखता जा रहा है | वह समझने का प्रयास कर रहा होगा, कैसा ये इश्क़ है-महा गज़ब इश्क़ है | अरे निवास भाई की टपरी खुली है चलो हो लेते हैं दो मिनट उनके साथ भी | मैंने कार किनारे लगाई, निवास दूर से ही देखकर खुश हो गया | मैं कार से उतरकर टपरी के नजदीक पहुँचा |
"क्या रे एक हफ्ते से यहाँ रुकता नही तू", निवास ने पान में चूना घिसते हुए कहा |
"थोड़ा काम और थकान ज्यादा रहती थी भाई क्या कहूं तुझसे," मैंने दायाँ हाँथ सिर क बालों में फेरते हुए कहा |
"क्या बोलेगा तू ? तेरी नई बॉस जो आई है ज्यादा मेहनत करवाती होगी, और क्या ?" यह कहते कहते निवास हसने लगा |
"ला तू, बड़ी वाली दे और माचिस देना लाइटर में मजा नही आता",मैंने उसकी बात को टालते हुए कहा |
उसने मुझे वो दिया जो मैंने माँगा, मैंने जलाया और जलाने लगा | कुछ देर बाद
"अरे भाई ये रेस्टोरेंट खुला होगा न ?", मैंने पूँछा |
"हाँ, अभी बजे ही कितने हैं ?", निवास ने जोर से कहा |
मैंने निवास को 50 रुपये दिए, कार में बैठा और चल पड़ा | रास्ते में रेस्टोरेंट से डिनर लेता हुआ घर पहुँच गया | माँ दुसरे दरवाजे के नीचे बनी सीढियों पर बैठी थी, मेरी बेटी बार-बार माँ पूंछ रही थी बुआ किसके साथ गयी है, मुझे साथ क्यों नहीं ले गयी | मैंने डिनर बाहर निकाला, माँ को दिया और कपडे उतरने अपने कमरे में चला गया | वर्षा बिस्तर पर लेटी थी, उसकी तकिया गीली थी | मैंने कपडे बदले और फ्रेश होकर लौटा अभी भी वह लेटी ही थी |
"माँ! खाना लगा दो," मैंने माँ को पुकारा |
"हाँ लग गया है, आजा खा ले " माँ ने जोर से कहा लेकिन दरवाजा बंद होने के कारण धीमा सुनाई दिया |
"और बहू को भी बोल देना आकर खा ले वह भी, उसकी तबियत भी ठीक नहीं है ", माँ ने फिर से कहा |
"वर्षा चलो खाना खाते हैं आज सब तुम्हारा पसंदीदा है", मैंने वर्षा को हिलाया और कहा |
"हूँ, खाओ, सो फिर खाओ और फिर से सो जाओ यही तो जिन्दगी में है " उसने लेटे लेटे ही कहा |
"अब चलो भी वर्षा डिनर करते है न, फिर बात करते हैं, आज तुम अच्छी लग रही हो" मैंने उसके पास बैठते हुए कहा |
"तुमको पूरी दुनिया रोती हुई अच्छी लगती है, उसमे सबसे ज्यादा मैं", अपना चेहरा मेरी तरफ पलटा के उसने कहा |
"सारकैजम" मैंने इतना कहा और उसे खीचकर डाइनिंग रूम में ले गया | वहां हम सभी अपनी अपनी टेबल पर बैठ गए | माँ मुस्कुरा रही थी | माँ को मुस्कुराता हुआ देखकर वर्षा भी मुस्कुराने लगी | सभी खाना खा रहे थे अचानक माँ ने मुझसे पूँछा तुझे कुछ याद रहता है क्या ? मैं मन ही मन सोचने लगा सालगिरह तो अगले साल होगी, जन्मदिन भी हो गया, इस महीने की खरीददारी भी हो गयी अब क्या ? मैंने माँ से पूँछा, क्या माँ?
"अरे पागल बहू माँ बनने वाली है आज दोपहर को पता चला ?" माँ ने इतना कहकर मेरे कान पकड़ लिए |
"सारे मर्दों को भूलने की बीमारी होती है",इनको तो बस्स्स......
"माँ, रहने दीजिये न बेचारे काम करते रहते हैं व्यस्त होते होंगे आप रहते हो न घर में मेरे लिए", वर्षा ने माँ से निवेदन करते हुए कहा |
मैं बस खाना खा रहा था और मन ही मन खुश हो रहा था | लेकिन मैं अपनी बहन को फोन करना भूल गया था लेकिन वो पहले ही आई है अपने कमरे में होगी | सोशल मीडिया में पार्टी के चित्र छाप रही होगी | सच में यार मुझे ये सब याद रखना चाहिए लेकिन ये बिल्कुल सामान्य है | जब हमारा ध्यान कहीं और रहता है उनमे से कुछ बातें भूलती ही हैं | इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता की कौनसी ज्यादा जरूरी है कौनसी कम क्योंकि ज़रूरी तो सब हैं |
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