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Hindi Poem || Love Proposal || स्वीकार यदि लेती मुझे || KaviKumar Sumit || Poem In Hindi

HINDI STORY || कॉफ़ी हाउस (COFFEE HOUSE) BY KaviKumar Sumit || #lovestory || hindi love story || short story

 




कॉफ़ी हाउस

 

"अरे! क्या समझ रखा है उसने ? ऐसे घूरता रहेगा और मै चुप रहूंगी ?," वह बहुत देर से घूर रहे लड़के की ओर जाते हुए बोली |

"रुको यार तुम !,"  यह कहते हुए मैंने उसका हाँथ पकड़ा और अपनी ओर खींचा |

लड़का यह सब देखते ही भाग खड़ा हुआ | आज भी वह दृश्य (सीन) याद करके मै अपने में ही हँस पड़ता हूँ | हम दोनों सर्किट हाउस से सेमरिया चौराहे की तरफ़ पैदल चलने लगे | लगभग 50 मीटर की दूरी तक हम दोनों चुप ही रहे | मैं अभी भी उसका हाँथ पकड़े हुए चल रहा था |

"मैं भी तो घूरता हूँ तुम्हें ?," मैं सहसा बोल पड़ा |

"मुझे मालूम था शैतान जी आप यह ज़रूर पूछेंगे," उसने  मुझसे हाँथ छुड़ाते हुए कहा |

" हाँ, ज़रूरी ही था फॉर अनुभव," बचकाने अंदाज़ में मैंने कहा |

" तो सुनो! तुम्हारे देखने और उसके देखने में अंतर है, क्योंकि तुम्हारे लिए इजाज़त है उसके लिए नहीं है| मैंने तुम्हें चुना है, मै राज़ी हूँ ......





वह बोलती गई मैं सुनता गया, गहराई से | जिस गहराई को कभी बीरबल ने अकबर से कहा था, बड़े लोगों की ऊँची बातों में जिस गहराई का ज़िक्र होता है और होगा | स्त्री के हृदय (दिल) की  गहराई को मैं उसके साथ समझ पा रहा था | छूना, देखना और बाँकी सब, इसके आगे छोटा हो गया | स्पष्ट हो गया कि प्यार में केमेस्ट्री बड़ी है फिजिक्स नहीं | जिससे आत्मा आनंदित हो उठे, जो हो रहा है देखा ना जा सके बस अनुभव हो |

"ओ प्रभु! तुम कहाँ खो गए ? क्या खाओगे आज ?" सहसा उसने मुझे हिलाया |​​​

हम कॉफ़ी हाउस में बैठे थे ठीक आमने-सामने

कोल्ड कॉफ़ी पीते हैं, सॉरी पीता हूँ मैंने कहा

सॉरी! पीता हूँ, पीते हैं ? उसने सर हिलाते हुए आँखे निकालते हुए कहा लेकिन वह मुस्कुरा भी रही थी |

मैंने हाँथ जोड़ लिए,

अरे लालू जी भावना..... मैंने बोलना चाहा

बस बस महराज कोल्ड कॉफ़ी पीते हैं, ठीक है ? उसने कहा और पूँछा भी

 

प्यार में रहना एक अनुशासित लोकतंत्र में रहने जैसा है, जहाँ पर चुनाव मर्जी से होता है कि हमें किसके साथ डिनर करना है या कॉफ़ी पीना है अथवा किसके साथ कुछ नहीं करना | समर्थन देना या इसे वापस लेना काफ़ी आसान है | और यदि विकास और मुद्दे बरक़रार रहे तो अंतिम साँस तक यह छोटा सा प्रजातान्त्रिक परिवार चलता रहता है | एक बात और जो अक्सर सुनी और कभी कभी देखी भी जा सकती है वह यह कि ऐसे परिवार को समाज स्वयं से अलग मानता है जब तक उसके किसी हिस्से ने यह कदम ना उठाया हो | बहरहाल अगर माँग पूरी नहीं हुई तो तकलीफ भी होती है जब तक दूसरी पार्टी का समर्थन न मिले |



 

हम कॉफ़ी पी रहे थे लेकिन ठण्डी केवल कॉफ़ी थी | वह मेरे घुटनों में अपने घुटने स्पर्श करा रही थी और चुस्कियां ले रही थी | शायद वह ऐसा अधिकार वश कर रही होगी, यही समझकर मैंने भी पैर नहीं हटाया |

 

यह अधजगी प्यास थी,

या प्यार था अपरिपक्व |

ज़रा अभी स्पर्श हुआ,

समझने को था वक़्त ||

 

हम कॉफ़ी पीकर काउंटर की ओर बढ़े| मैंने ज़ेब में हाँथ डाला, अरे भाई अपनी ज़ेब में | उसने अपने हैंडबैग की ज़ेब से पैसे निकाले |

 

रुको दे रहा हूँ, रखो तुम, मैंने कहा |

आज मै दे देती हूँ तुम अगली बार दे देना ,उसने कहा |




शहर का एक हिस्सा काउंटर के उस पार आराम कुर्सी में बैठकर आराम से हमें देख रहा था | एक बार मेरी तरफ़ एक बार उसकी तरफ़, ये कोई नई घटना नहीं थी ऐसे मौकों का अभ्यास हमें पहले से था |

 

एक काम करते हैं, आधा-आधा दे देते हैं, मैंने कहा |

हाँ! ठीक है, उसने तुरंत मान लिया |

 

हमने पैसे चुकाए और अपने-अपने डेस्टिनेशन (गंतव्य) की ओर चले गए |

आधा-आधा बाँटने की संस्कृति तो पुरानी है, इसी के बूते हमारा देश विकास की नई ऊँचाइयों को छू रहा है परन्तु अब बात कुछ अलग है | आधे में कोई खुश नहीं, सब पूरे और बड़े की तलाश में भटक रहे हैं | कम देकर अधिक प्राप्त करने की चाहत आम हो गई है | शायद शहर इसे ही पाश्चत्य सभ्यता कहता है | लेकिन इश्क तो आधे से भी कम में खुश है, यह तो शहर ही है जो दोहरी सोच में परेशान है | क्योंकि इश्क पुराना है वह पूर्वी ही रहेगा शहर ज़रूर छुप-छुप के पाश्चात्य होता जा रहा है, एक दिन इसकी हालत ऊधव जैसी हो जाएगी, पागल और बेसुध |  किसी भावना या आदत का आम हो जाना बाँकी फलों के दाम गिरा देता है और सब सस्ता लगता है, जान भी |