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HINDI STORY || पहली मुलाक़ात || कविकुमार सुमित || SHORT STORY || LOVE STORY

 





पहली मुलाक़ात 


‘‘जो पिछली रात को बोला,

 वो कैसे भूल जाती हो ?

मोहल्ले से गुजरता हूँ,

कली तुम फूल जाती हो ।"

 

                    कहाँ से शुरू करूँ समझ नही आ  रहा । वैसे मिले तो हम कई बार है, लेकिन आज जिस तरह मिल रहे हैं पहले कभी नहीं मिले । उसने बाकी लड़कियों की तरह कभी मुझे  भैया नहीं कहा, इसके लिए मुझे खुद बधाई हो । मैं विवेकानंद पार्क के चैराहे वाले छोर पर रखी एक कुर्सी में बैठा हुआ था, ऑटो वाले सवारी को लेकर साँय-साँय दोनों ओर से आ-जा रहे थे । मेरी नजर भी ऑटो पर टिकी थी कि कब वह किसी ऑटो से उतरे और मैं उसे देखकर एक लम्बी सी मुस्कान दूँ । अचानक एक ऑटो चैराहे पर बने फुटपाथ के नजदीक रूकती है और मेरे कंधे की ऊँचाई तक की एक लड़की गहरे नीले टॉप और काले जींस में उतरती है । उतारते ही अपने चारों ओर देखना शुरू कर देती है कि कोई रिश्तेदार या पड़ोसी तो आसपास नहीं है । मैं उठकर बाउंड्री के नजदीक जाता हूँ और जोर-जोर से हँसने लगता हूँ । 

 

“बजरंग दल वालों को देख रही हो ! ”, मैंने हँसी रोककर जोर से बोला ।

ऑटो वाले को किराया देकर वह भी बाउंड्री के करीब आ जाती है ।

“हाँ! इस समय तुम थोड़ा मोटे हो रहे हो तो सोचा बुला लूँ, लेकिन कोई दिख ही नहीं रहा”, वह मुस्कुराते हुए बोली ।

“कितनी देर लगा दी आधे घन्टे से यहाँ बैठा हूँ, इधर आ जाओ जल्दी”, मैं परेशान होकर भौहों को चढ़ाते हुए बोला ।

वह आकर मेरे बगल में बैठ गई और मेरी तरफ देखने लगी ।

“कल तुम्हारे चाचाजी मेरी दुकान आए थे, ढेरों कपड़े लेकर गये”,मैंने कहा ।

“अच्छा !”,उसने आंखे बड़ी करके कहा ।

“मैंने उनको डिस्काउंट भी दिया”, मैंने खुश होकर कहा ।

“तुमने उनको डिस्काउंट क्यों दिया, कल ही मेरे पापाजी से झगड़ा कर रहे थे”, उसने जोर से कहा  ।

‘‘तो मुझे ये बात तुमने बताई ही कहाँ ?‘‘, मैंने उसके दुपट्टे का एक छोर पकड़ कर प्यार से पूछा ।

‘‘फिर भी तुमने क्यूँ दिया‘‘, उसने नजरें नीची करके बच्चों के अंदाज में कहा ।

 

इससे मुझे पहली मुलाकात में ही पता चल गया कि आगे के सरे कदम फूँक-फूँक कर रखने हैं । एक भी गलती मेरी कुरबानी करवा सकती है । इन सब के बाद वहाँ बैठा शहर का एक हिस्सा हमें पूरी तसल्ली के साथ देखने लगा । एक-दो नजर मैंने शहर कि ओर देखा लेकिन मुझे लगा मैं डेट खराब कर रहा हूँ । मैंने बैग से ‘पहली मुलाकात‘ का तोहफा निकाला और उसके कंधे में हाँथ रखा, उसकी आँखे बंद-हाथ काँप रहे थे , दोनों कि धड़कने तेज थीं । पहले तो उसने तोहफा लेने से मना किया लेकिन मान गई और हँसते हुए तोहफा ले लिया ।

 

‘‘आजकल प्यार कितना महँगा होता जा रहा है, ना ? बड़ी मुश्किल और मेहनत से मिलता है‘‘, मैंने गम्भीरता भरे स्वर में मुस्कुराते हुए कहा ।

‘‘तो क्या यह गिफ्ट लौटा दूँ तुमको? मैंने तो कहा नहीं था । वैसे भी जो प्यार चाहते है, और कुछ नहीं चाहते।‘‘ , उसने धीमे स्वर में कहा ।

‘‘आज तुमने क्या-क्या किया ?‘‘, मैंने पूँछा ।

उसने बोलना शुरू किया, ‘‘मैं सुबह उठी, ब्रश किया, पानी पिया, नाश्ता किया, पानी पिया फिर खड़ी हुई,फिर छत में गई, फिर नहाया, फिर फूल तोड़े उन्हें टोकरी में रखा, टोकरी उठाई ‘‘

 

इतना कहकर वह मुँह में हाँथ रखकर हँसने लगी, उसकी खूबसूरत और बेपरवाह हँसी मुझे भा गयी । जीवन में कुछ ऐसे मनोहारी दृश्य और चित्र हमारे नजदीक होते हैं, जिन्हें हम केवल उसी क्षण अनुभव कर पाते हैं जब वे घटित होते हैं। उन्हें कभी भूलते नहीं लेकिन उनका बखान केवल भावनाओं से हो सकता है शब्दों से नहीं, आज कुछ ऐसा ही मैं भी देख और अनुभव कर पा रहा हूँ, शायद इसे ही प्राकृतिक रूप से प्रेम, प्यार या मोहब्बत कहते हैं । 

उसकी हँसी रुक गयी लेकिन मेरे भीतर बहुत कुछ शुरू हो चुका था, उसके भीतर भी । 

‘‘तुम मुझे झेल लोगे ना ?‘‘, उसने मेरे हाँथों में हाँथ रखकर पूँछा ।

‘‘आई थिंक इसे झेलना नहीं समझना कहते हैं ।‘‘, मैंने  अपना नीचे वाला होंठ अपने दांतों में दबाया और उसकी नाक हिलाते हुए कहा ।

‘‘अच्छा सोच लेते हो और शायद बोलते भी अच्छा हो।‘‘, दबी नाक से उसने बोला ।

 

कहते हैं कि जब शरीर छूने का कोई स्त्री विरोध ना करे तो समझ जाना चाहिए कि वह पूरी तरह से आपकी है, अब  आपको उसका और अधिक इम्तेहान नहीं लेना चाहिए ।

हमारी तमन्ना तो बढ़ रही थी लेकिन हमारे आसपास शहर भी था, हमें उसकी भी तमन्ना का ध्यान रखना था। शहर ना किसी का दुश्मन होता है ना ही किसी का दोस्त, शहर एक अवसरवादी भीड़ है जो मौके को चूकने का शुभ कार्य नहीं करती । गंगा जैसी नदियों को यह नहीं याद रहा होगा या किसी ने समझाया नही होगा कि रात को और घनी आबादी वाले शहर के बीच नहीं बहा करते हैं, इसीलिए आज गंगा की यह हालत है । सुना है यमुना का रंग काला है शायद पहले वह भी साफ रही हो और किसी शहर के बीच से अकेली गुजरने की गलती कर बैठी हो ।

हम दोनों इतने में ही खुश थे कि कम से कम शांत जगह तो मिली। वह तोहफे की पैकिंग खोलने लगी, मैं नर्वस होने लगा कि अगर उपहार उसे पसंद नहीं आया, तो क्या होगा?

‘‘मेरी नजर मेरा तोहफा और उसका इश्क,

सब हरियाली साथ बस शहर था खुश्क ।"