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Hindi Hasya Kavita | किशोरों की गाथा | KaviKumar Sumit

किशोरों की गाथा







दूध के दांत अभी टूटे नहीं,
माँ-बाप के बंधन से अभी छूटे कहीं,

सुबह का कलेवा अभी छूटा नहीं है,
निकलते ही हेरने लगे मधुबाला कहीं है |

घर से निकलते हैं,
स्कूल जाने की खातिर,

काम करते हैं जैसे,
चोर बदमाश शातिर |

घर से पैसे लेकर ये चलते हैं ,
दारू, बीड़ी सट्टे वालों के साथ रहते हैं,

दिखते हैं ऐसे की फूकने से उड़ जाएँ,
बाहर न चले तो छोटे भाई को सताएँ |

प्रतिशब्द मुँह से गाली निकलती है ,
परीक्षा के बाद कॉपी खाली निकलती है,

चुटके कुंजी से अपनी शान बढ़ाते हैं,
मास्टर यदि मारें तो नोट दिखाते हैं |

ग़रकोई सदाचार की बात करता है ,
कहते हैं, चुप कर तेरे भाई का चलता है,

माँ कुछ बोले तो आँख दिखाते हैं,
बाप को देख खाट नीचे छुप जाते हैं |

अरे! मैं पूंछता हूँ ,
कब तक यह तमाशा रहेगा,
कभी न कभी तो राम नाम जपेगा |

उम्र पंद्रह, तीस के काम कर रहे,
स्वयं को तीस मार खाँ समझ रहें |

शिकायत बाप से करो तो कहेंगे,
क्या करें, अपने ही भाग्य मरेंगे |

हम पढ़ाते हैं सारे पैसे उड़ा देते हैं
न करें तो रूठ खाना नहीं खाते हैं |

समझ जा वक़्त है कैसा कमबख्त तू ,
वरना रह जायेगा आहा अहा ऊ..


माँ-बाप के आँखों को झांककर तो देखो,
उनके माह की अब भी पूँछ लो |

छोटी-छोटी बातें अगर ध्यान नहीं देते,
मर जाओगे अफसरों के यहाँ आते-जाते |

हमेशा रहेगी मुँह की खानी,
मज़दूरी, कमाना-खाना , नमस्ते सलामी |