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देशभक्ति गीत | हिन्दी कविता | ऐसा है हिन्दोस्तां ये दुश्मनों को भा रहा | कविकुमार सुमित

सा है हिन्दोस्तां ये दुश्मनों को भा रहा







अकबरों की जन्मदाता रामजी की पुण्यगाथा,
निज धरा वीरों की माटी वीर इसके हैं विधाता |

कृष्ण वाणी गूंजती है गूँजता मीरा का तर्पण ,
प्रतिकणों प्रतिक्षणों में राजा पुरु की वीर गाथा |

स्वर्ग दुनिया का है माथे पाँव सागर ने पखारा ,
शिशु हो या शिशुपाल कोई गोद में बैठा दुलारा |

स्वर्ण पौधे इस धरा के वृक्षों को पूजा है जाता ,
नीतिबुद्धि की कुशलता दर पे झुकता विश्वमाथा |

छोड़ करके कौम अपनी सारा मज़मा आ रहा,
ऐसा है हिन्दोस्तां ये दुश्मनों को भा रहा |

वेद पृष्ठों उपनिषद से ज्ञान का सागर बनाया,
यू एन ओ की बैठको में तर्क का लोहा बनाया |

हो प्रवासी या विदेशी कष्टों का मोचन किया है,
विश्व के छोटे बड़े सब के ही घर भोजन किया है | 

विश्वगुरुता रखता कायम सप्त रंगी देश मेरा,
सप्त भगिनी च द्वाविंशति भ्राताओं का देश मेरा |

यह धरातल देवकल्पित मोर पक्षी गा रहा,
ऐसा है हिन्दोस्तां ये दुश्मनों को भा रहा |