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बाद मेरे तुम | कविकुमार सुमित | Emotional poem on rapes in India



बाद मेरे तुम



 कितने शर्म और दुख की बात है कि आज कुछ वर्षों से देश के कोने- कोने से ना केवल अधेड़ उम्र बल्कि किशोर एवं शिशुओं के उम्र की महिलाओं बच्चियों के साथ हुए बलात्कार की घिनौनी खबरें आ रही हैं। ऐसी घटनाओं पर कुछ भी प्रतिक्रिया देना ना केवल मुझे बल्कि अन्य लेखकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी अवसरवादी लेखन एवं बखान की तरह लगता है, लेकिन अगर ऐसी घिनौनी हरकतों के विरोध में बोला ना गया तो यह भी कर्तव्य से मुकर जाने की तरह लगता है। मैंने अपनी यह रचना कुछ वर्षों पहले ही लिखी थी लेकिन इसका केंद्रीय भाव कुछ और था। परंतु आज की पृष्ठभूमि मैं बिल्कुल सही उतर पा रही है और यह कविता या रचना अथवा ग़ज़ल किसी पीड़ित स्त्री के दर्द को अच्छी तरह बयान कर पा रही है ऐसा मेरा अंदाजा है ।
प्रस्तुत है मेरी रचना ' बाद मेरे तुम' :-



मेरी ख़ाक ले आना जलने के बाद मेरे तुम,
बस आवाज मत देना चलने के बाद मेरे तुम।

ग़मदीदा मैं बिल्कुल नहीं खुद को खोकर,
सब मैल गिरा देना मरने के बाद मेरे तुम।


मेरी नफ़्ज में तेरी नफरत और इश्क दफन है,
शक ना करना आग में बदलने के बाद मेरे तुम।

गुमसुम सी जूतों की रस्सी हूं पतली सी,
समेट लेना फूलों को कुचलने के बाद मेरे तुम।


आसमान में किसी की शायद सियासत नहीं,
आब- ए-तल्ख पी जाना उबलने के बाद मेरे तुम।

चमन में चिराग चमक रहे होंगे तब तक,
दिल में मुझे रखना ढलने के बाद मेरे तुम।





2019-20© KaviKumar Sumit