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कविता : सच पार कर जाता है | कविकुमार सुमित

         कविता : सच पार कर जाता है 



मित्रो इतिहास साक्षी है, असत्य कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो जीत अंततः सत्य की ही होती है | विजय श्री का तिलक उसी के माथे पर लगता है जो अनुशासन, कर्मठता और सत्य के साथ जीवन में संघर्ष करता है अथवा करती है | यदि महाभारत के तथ्यों (concepts) को गहराई से विचार किया जाये तो उसकी हर एक घटना में ' सत्य ' मात्र का अनुकरण करने के उपदेश एवं सन्देश मिलते हैं |

इस  प्रकार से दुर्योधन या मति तथा नेत्र दोनों से हीन धृतराष्ट्र का चयन तथा पांडू पुत्रो का चयन समूचे भविष्य को यह साफ कर देता है कि सत्य या असत्य का चयन ही हमारे भविष्य में आगामी सुख या दुःख का चयन निर्धारित करते हैं, न की भाग्य, न हस्तरेखा न माथे न ही पादों की रेखाएं | इसी प्रसंग में मेरी यह कविता, जिसमे इस नाचीज़ ने सत्य की महिमा को गीता, महाभारत से जोड़ने का यत्न किया है , आपके भरपूर आशीर्वाद की आशा करता हूँ |




गीता में तभी कृष्ण आता है ,
जब पाप का पलड़ा भारी हो जाता है| 
यह दीपक नहीं जलाता कोई मानव ,
यह पुण्य है स्वयं जल जाता है ||१||



फिर अर्जुन को बुलाया जाता है ,
जब अपना ही कपट कर जाता है| 
सारे रिश्ते-नाते छोड़ देता है वह ,
जब धर्म की राह चला जाता है ||२||



भीषण मार-काट युद्ध होता है ,
जब नियता अपने घर सोता है |
संजय तभी पैदा हो जाता है ,
जब धृतराष्ट्र अँधा हो जाता है ||३||



मधुसूदन सत्यकर्म को सिखाता है ,
काठ पुतली नृत्य भी नचाता है |
जब-जब स्वाभिमान पर वार हुआ ,
सुदर्शन भी दौड़ा चला आता है ||४||



लाखों खाइयाँ है परीक्षाओं की 
जिनमे सच झूठ तौला जाता है |
झूठ हर वक्त अटक जाता है 
मात्र सच कसौटी पार कर जाता है ||५||