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कविता:- वृद्धजन खुली किताब हैं


वृद्धजन खुली किताब हैं


अगर सीखने की सबसे अच्छी पुस्तकालय है तो वे हैं अनुभवी वृद्धजन, हमें हमेशा उनके आसपास या कहें कि उन्हें हमेशा हमारे इर्द गिर्द होना चाहिए। अच्छा ये भी कहा जाता है कि पुराने जमाने में घरों के बाहर कबूतरों में बैठी सयानों की टोली सी सी टी व्ही मानी जाती थी क्यूंकि उन्हें सबकी खबर रहती थी । कौन क्या कर रहा कहां जा रहा । खैर ये तो मजे की बात हो गई, वास्तव में सयाने लोगों की दी गई जानकारी और सुझाव सभी समस्याओं को आड़े हाथ ले लेती हैं । ऐसी रामबाण बुद्धि वाले वृद्धजनों के सम्मान में मेरी यह छोटी सी रचना -

' वृद्धजन खुली किताब हैं '

हाँथ में लाठी मन में आशिष
निर्भय पौधों को सींचें ख्वाब हैं
समसामयिक इतिहास की बारिस
वृद्ध जन खुली किताब हैं

तर्क-वितर्क भेद न रंजिश
सब दुर्गुण के दाब हैं
हंसी ठिठोली न कोई बंदिश
हर व्यंजन और स्वाद हैं

राम राज राह रवि हर्षित
जाड़े में सुखदायी आग हैं
लाड़-प्यार मुस्काते सचरित
रसिक प्रेम के बाग़ हैं

करते क्यूँ इनको हो उपेक्षित
सब बालक ये बाप हैं
संगति कर जो होता संचित
दुनिया का शाह-ए-बाद है

©कवि - कविकुमार सुमित

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