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ग़ज़ल:- ख़ानुम से प्यार ( कविकुमार सुमित )

ग़ज़ल:-  ख़ानुम से प्यार 

जो खानुम  से प्यार करके पल भर में छूट जाया करते है,
डाबर  के सिपाही समंदर में बस झूठ पाया करते हैं |

बड़ी-बड़ी  बातों  की  समझ  उन्हें  कैसे  आयेगी ?
जो  छोटी - छोटी  बातो  पर रूठ जाया करते है |

ये  बेताकत   कांच  तूफानों में  क्या  टिकेंगे ?
जो मुझ हवाओं के झोंको से टूट जाया करते हैं |

ये इंसानियत  और इश्क  सिखाने से बड़े नहीं होंगे !
छोटे हैं,ये गुब्बारे चन्द सांसों में फूट जाया करते हैं |

कभी  नहीं  मिलता  जिन्हें  पीने  को  महफ़िल  में,
ज्यादा  मचलते  है  जो  एक  घुट  पाया  करते  हैं  |